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Showing posts from January, 2021

भर्तृहरि नीतिशतकम्

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राजा भर्तृहरि एक महान् संस्कृत कवि थे।  परिचित संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। भर्तृहरि संस्कृत मुक्तककाव्य परम्परा के कवि हैं। भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ का शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम  बाबा भरथरी  भी हैं।                       भर्तृहरि | (इमेज: विकिमीडिया कॉमन्स ) संस्कृत विद्वान और टीकाकार भूधेन्द्र ने नीतिशतक को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया है, जिन्हें 'पद्धति' कहा गया है- मूर्खपद्धतिः विद्वतपद्धति मान-शौर्य-पद्धति अर्थपद्धति दुर्जनपद्धति सुजनपद्धति परोपकारपद्धति धैर्यपद्धति दैवपद्धति कर्मपद्धति भर्तृहरि शतकत्रय की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं।  भर्तृहरि ने   रसपूर्ण भाषा में नीति, वैराग्य तथा श्रृंगार जैसे गूढ़ विषयों पर शतक-काव्य लिखे हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक उनकी रचनाएं भिन्न-भ...

विद्वतपद्धति | भर्तृहरि नीतिशतकम्

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विद्वतपध्दति | विद्वान व्यक्ति पर  शास्त्रोपस्कृतशब्दसुन्दरगिरिः शिष्यप्रदेयागमा विख्याताः कवयो वसन्ति विषये यस्य प्रभोर्निधनः । तज्जाड्यं वसुधाधिपस्य कवयो ह्यर्थं विनापीश्वराः कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका न मणयो यैरर्घतः पातितः ॥ अगर कोई प्रसिद्ध कवि जो अपने शब्दों का सुन्दर इस्तेमाल करने में माहिर है, और शास्त्रों के ज्ञान में पारंगत है तथा अपने शिष्यों को भी पारंगत करने योग्य है; आपके राज्य में निर्धन है तो हे राजन यह आपका दुर्भाग्य है न की उस विद्वान कवि का! ज्ञानी पुरुष आर्थिक संपत्ति के बगैर भी अत्यंत धनी होते हैं। बेशकीमती रत्नों को अगर कोई जौहरी ठीक से परख नहीं पाता तो ये परखने वाले जौहरी की कमी है क्यूंकि इन रत्नो की कीमत कभी कम नहीं होती।  हर्तुर्याति न गोचरं किमपि शं पुष्णाति यत्सर्वदा ह्यर्थिभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम् । कल्पान्तेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमन्तर्धन येषां तान्प्रति मानमुज्झत नृपाः कस्तैः सह स्पर्धते ॥ ज्ञान अद्भुत धन है, ये आपको एक ऐसी अद्भुत ख़ुशी देती ह...

मूर्खपद्धतिः | भर्तृहरि नीतिशतकम्

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मूर्खपद्धतिः | अल्पज्ञ व्यक्ति पर दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये । स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ॥ यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः ।  अस्मत्कृते च परिशुष्यति काचिदन्या, धिक्तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥  जिस स्त्री से मैं प्रेम करता हूँ उसके ह्रदय में मेरे लिए कोई प्रेम नहीं है,बल्कि वह किसी और से प्रेम करती है,जो किसी और से प्रेम करता है, और जो स्त्री मुझसे प्रेम करती है उसके लिए मेरे ह्रदय में कोई स्नेह नहीं है। मुझे इन सभी से और खुद से घृणा है।  अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति ॥ एक मुर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन एक अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रम्हा भी नहीं समझा सकते, क्यूंकि अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अँधा बना देता है। प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात्स मुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् । भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारय...

भारतीय भाषाओं में आधुनिक शास्त्रीयता को लाने में चुनोतियाँ और सुजाव।

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भारत सरकार द्वारा आदेश के अनुसार कुछ संस्थाओं में प्रौद्योगिकी शिक्षा को भारतीय भाषाओं में देने की शुरुआत होगी। यह लेख एक जर्मन प्रोफेसर के द्वारा नेटिव भाषाओं में आधुनिक शास्त्रीयता को लाने के अपने अकादमिक अनुभव को साजा करते हुए लिखे गए लेख का हिंदी अनुवाद है।  कुछ IITs और NITs द्वारा इंजिनीरिंग कोर्सेज को भारतीय भाषाओं में लाने की पहल। भरतीय भाषाओं में शिक्षा देते वक़्त सब्से बड़ी समस्या होती है कि इन भाषाओं में पढ़ाने के लिए पहले से कोई कोर्स मटेरियल और पुस्तकें उपलब्ध नहीं है। लेखक का कहना है कि वह भी अधिकतर भारतीयो की तरह अंग्रेजी माध्यम में ही पड़े हैं। लेकिन अब वह जर्मनी के एक विश्वविद्यालय मैं पड़ा रहे हैं और उनका अनुभव आने वाले हिंदी भाषी अध्यापकों के लिए मददगार साबित होगा। लेखक का कहना है कि वह कभी जर्मन भाषा के फॉर्मल विद्यार्थी नहीं थे और उन्होंने जर्मन को खुद से ही सीखा है। लेखक की विडंबना को उन भारतीय अध्यापक के साथ देखा जा सकता है जो भरतीय भाषाओं में नहीं पड़े।शुरुआत मुश्किल होती है लेकिन इसे क्रियान्वत किया जा सकता है।  लेखक कई ऐसे कॉर्स पढ़ाते हैं ...

वागड़ | वीर बाला कालीबाई

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जून १९४७ में रास्तापाल गांव में कालीबाई ने  12 वर्ष  की उम्र में अपने शरीर को छोड दिया। अंग्रेजों के शोषण के विरूद्ध बहादुरी की एक मिसाल कायम कर समाज में शिक्षा अलख जगाई। वीर काली बाई का जन्म डुंगरपूर के एक गाँव  रास्तापाल में हुआ था। महारावल लक्ष्मणसिंह उस समय डूंगरपुर के जागीरदार थे और पूरे देश पर अंग्रेजी शासन का कहर था।                                                  (साभार: Patrika ) उस समय के महान समाजसेवी श्री भोगीलाल पंड्या के तत्वावधान में एक आंदोलन चलाया जा रहा था जो समाज में फैली कुरीतियों को दूर कर रहा था और समाज मैं सभी लोगों तक शिक्षा लेजा रहा था। डूंगरपुर के हर सामाज तक शिक्षा को लेजाने कि कामना से चल रहा यह आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत को रास नहीं आया और रियासत पर इन पाठशालाओं को बंद करने का दबाव बनाया गया और सन 1942 में तो कानुन बनाकर पाठशाला बंद करने का आदेश दे दिया गया। एक मजिस्ट्रेट नियुक्त करके गांव की सभी पाठशालाओं ...

The calculus controversy and it's indian origin

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Invention of calculus is generally considered as beginning of scientific revolution. Newton and Leibniz faught each other for credit of calculus which actually belongs to kerala school of mathematics and astronomy India has always been known for advancements in science and mathematics, rightly so. India's wealth derived mainly from trade and agriculture which required good astronomy, navigation and trigonometry which led to advancements in maths.  This should not surprise you that CALCULUS and infinite series have their origin in India. Today calculus and many other indian works are wrongly credited to European scholars.  These indian works reached to europeans through Jesuits who had a centre for mass translation of indian manuscripts in cochin college. Be it sine series [credited to Newton] or alleged "Leibniz" series [credited to Leibniz] both were indian works. In 1581 letters, Ricci explicitly aknowledged that he was trying to understand local methods of ...

Book review | Unsung Valour

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Forgotten warriors of the kurukshetra war              "Loyal. Valiant. Steadfast.               They were all that and more.               They secured crucial victories.               They were indespencible.               And yet, they were forgotten." The writers of this book deserve all appreciation for bringing unsung stories of great warriors directly from the kurukshetra war. A very creative addition to long tradition of storytelling in india. The ten stories of book explore the Mahabharata epic in new dimension and bring out tales of lost valour and as they call it  unsung valour  of great warriors of the kurukshetra war forgotten over period of time in popular imagination. This attempt by ten writers to bring to bring forth those forgotten warriors should be appreciated and taken tob...

Shastrarth between Adi Shankaracharya and Maṇḍana Miśra

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India has rich traditions of shastrarth and intellectual debates on philosophy among the people of different schools or with the antagonistic sects. One of them is famous shastrarth between adi Shankaracharya and Maṇḍana Miśra. Adi Shankaracharya Adi Shankaracharya was born in kalady, Kerala. lord Shiva who offered his parents the option of a son who would be great and depart this world at 32 or a son who would lead a normal life for a long time.  Maṇḍana Miśra He was follower of the karma Mimansa school of philosophy.Ubhaya Bharati was wife of Maṇḍana Miśra. He became a sannyasin and an advaitin after he was defeated by Shankara in a debate.                                       ( image credit jagran ) Shankara initially sought out Kumarila Bhatta, who was leading exponent of Purva Mimansa to debate the relative merits and demerits of their philosophies. B...