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भर्तृहरि नीतिशतकम्

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राजा भर्तृहरि एक महान् संस्कृत कवि थे।  परिचित संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। भर्तृहरि संस्कृत मुक्तककाव्य परम्परा के कवि हैं। भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ का शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम  बाबा भरथरी  भी हैं।                       भर्तृहरि | (इमेज: विकिमीडिया कॉमन्स ) संस्कृत विद्वान और टीकाकार भूधेन्द्र ने नीतिशतक को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया है, जिन्हें 'पद्धति' कहा गया है- मूर्खपद्धतिः विद्वतपद्धति मान-शौर्य-पद्धति अर्थपद्धति दुर्जनपद्धति सुजनपद्धति परोपकारपद्धति धैर्यपद्धति दैवपद्धति कर्मपद्धति भर्तृहरि शतकत्रय की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं।  भर्तृहरि ने   रसपूर्ण भाषा में नीति, वैराग्य तथा श्रृंगार जैसे गूढ़ विषयों पर शतक-काव्य लिखे हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक उनकी रचनाएं भिन्न-भ...

विद्वतपद्धति | भर्तृहरि नीतिशतकम्

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विद्वतपध्दति | विद्वान व्यक्ति पर  शास्त्रोपस्कृतशब्दसुन्दरगिरिः शिष्यप्रदेयागमा विख्याताः कवयो वसन्ति विषये यस्य प्रभोर्निधनः । तज्जाड्यं वसुधाधिपस्य कवयो ह्यर्थं विनापीश्वराः कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका न मणयो यैरर्घतः पातितः ॥ अगर कोई प्रसिद्ध कवि जो अपने शब्दों का सुन्दर इस्तेमाल करने में माहिर है, और शास्त्रों के ज्ञान में पारंगत है तथा अपने शिष्यों को भी पारंगत करने योग्य है; आपके राज्य में निर्धन है तो हे राजन यह आपका दुर्भाग्य है न की उस विद्वान कवि का! ज्ञानी पुरुष आर्थिक संपत्ति के बगैर भी अत्यंत धनी होते हैं। बेशकीमती रत्नों को अगर कोई जौहरी ठीक से परख नहीं पाता तो ये परखने वाले जौहरी की कमी है क्यूंकि इन रत्नो की कीमत कभी कम नहीं होती।  हर्तुर्याति न गोचरं किमपि शं पुष्णाति यत्सर्वदा ह्यर्थिभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम् । कल्पान्तेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमन्तर्धन येषां तान्प्रति मानमुज्झत नृपाः कस्तैः सह स्पर्धते ॥ ज्ञान अद्भुत धन है, ये आपको एक ऐसी अद्भुत ख़ुशी देती ह...

मूर्खपद्धतिः | भर्तृहरि नीतिशतकम्

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मूर्खपद्धतिः | अल्पज्ञ व्यक्ति पर दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये । स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ॥ यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः ।  अस्मत्कृते च परिशुष्यति काचिदन्या, धिक्तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥  जिस स्त्री से मैं प्रेम करता हूँ उसके ह्रदय में मेरे लिए कोई प्रेम नहीं है,बल्कि वह किसी और से प्रेम करती है,जो किसी और से प्रेम करता है, और जो स्त्री मुझसे प्रेम करती है उसके लिए मेरे ह्रदय में कोई स्नेह नहीं है। मुझे इन सभी से और खुद से घृणा है।  अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति ॥ एक मुर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन एक अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रम्हा भी नहीं समझा सकते, क्यूंकि अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अँधा बना देता है। प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात्स मुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् । भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारय...