इन्द्र जिमि जंभ पर | कवि भूषण

छत्रपति शिवाजी महाराज पर लिखी वीर रस की यह महान कविता जो आज भी हमें अचम्भित कर देती है वह कवि भूषण द्वारा रचित हैं । कवि भूषण वीर रस के अद्वितीय कवि थे और उन्होंने अपने काव्य द्वारा तत्कालीन असहाय हिंदू समाज को वीरता का पाठ पढ़ाया और उन्हें आक्रांताओ का विरोध करने के लिए प्रेरित किया । ( chatrapati shivaji maharaj/ jagran josh ) इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर, रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं। पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर, ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥ दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर, 'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं। तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर, त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥ ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी, ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं। कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं, तीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं॥ भूषन शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग, बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं। 'भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास, नगन जडातीं ते वे नगन जडाती हैं॥ छूटत कमान और तीर गोली बानन के, मुसकिल होति मुरचान की ओट मैं। ताही समय सिव...