मूर्खपद्धतिः | भर्तृहरि नीतिशतकम्

मूर्खपद्धतिः | अल्पज्ञ व्यक्ति पर दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये । स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ॥ यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः । अस्मत्कृते च परिशुष्यति काचिदन्या, धिक्तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥ जिस स्त्री से मैं प्रेम करता हूँ उसके ह्रदय में मेरे लिए कोई प्रेम नहीं है,बल्कि वह किसी और से प्रेम करती है,जो किसी और से प्रेम करता है, और जो स्त्री मुझसे प्रेम करती है उसके लिए मेरे ह्रदय में कोई स्नेह नहीं है। मुझे इन सभी से और खुद से घृणा है। अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति ॥ एक मुर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन एक अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रम्हा भी नहीं समझा सकते, क्यूंकि अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अँधा बना देता है। प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात्स मुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् । भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारय...